दुर्गा के नौ रूपो में छठा रूप मां कात्यायनी का है। नवरात्र के छठे दिन देवी के इसी स्वरूप की पूजा होती है। माता पापी जीव धारियों और दानवों का नाश करती हैं और अपने भक्तों को भय और रोगों से मुक्त करती हैं। माता न केवल मनुष्यों अपितु ऋषि-मुनियों और देवताओं के संकटों को भी दूर करने वाली हैं। माता कात्यायनी अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं और उन्हें अरोग्य प्रदान करती हैं।माता कात्यायनी से जुड़ी कथा यह है कि, महर्षि कात्यायन माता के अनन्य भक्त थे और माता को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने कठोर तप किया था। माता ने उनके तप से प्रसन्न होकर जब उनको दर्शन दिये तो कात्यायन ऋषि ने उनसे वर मांगा कि वह उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। ऋषि की तपस्या से प्रसन्न माता ने उनकी यह इच्छा पूरी की और पुत्री के रूप में कात्यायन ऋषि के घर में जन्म लिया। कात्यायन ऋषि की पुत्री होने की वजह से ही माता के इस रूप को कात्यायनी नाम से पूजा जाता है। कात्यायनी रूप में माता ने अत्याचारी राक्षस महिषासुर का वध किया था, इसलिए इन्हें महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी पुकारा जाता है।
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